जानना अलग है, समझना अलग, और महसूस करना बिल्कुल अलग।
जैसे आप डिप्रेशन को केवल महसूस कर सकतें हैं, आप किसी को परिभाषा देकर महसूस नही करा सकते।
जैसे आप संगीत को महसूस करतें हैं पर किसी बहरे व्यक्ति को समझा कर महसूस नहीं करा सकते।
ऐसे ही किताबें पढ़ कर भी सिर्फ इतना ज्ञान होगा कि असली ज्ञान तो किताबो के परे हैं।
प्रवचन और सत्संग से भी बस दिशा ही मिलेगी।
चलना तो स्वयं है।
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